Dharohar

*अपनी धरोहर* को जानने व अपने बच्चो को समझाने की एक कोशिश आज करी गयी क्योंकि यह हमारी *विरासत* है जिसे हमें सहेजकर रखना है, केन्द्रीय संग्रहालय में पाषाण काल के अवशेष, मोहनजोदारो के समय के बर्तन या गुप्ता कालीन सिक्के व शिलालेख या मराठा लड़ाको की तलवारें देखने के बाद ऐसा लगा की हम सब भी अतीत की गहराइयों में खो गए हैं और एक सन्नाटा से पसरा हुआ है जहां केवल परांजपेजी की आवाज़ है और सारा इतिहास हमारी आंखों के सामने से गुज़र रहा है। केन्द्रीय संग्रहालय से जाने का मन नही कर रहा था ऐसा लग रहा था कि जितना ज्ञान बटोर सके समेट लें परन्तु वक़्त की मजबूरी के कारण हमें हमारे काफिले को लाल बाग की तरफ मोड़ना पड़ा। *लाल बाग़* होलकर महाराज का महल था जहां 1978 तक तो महाराज रहते थे, यहां पता नही क्यों तस्वीर खीचना मना है नही तो किरार इटली के संगमरमर के खंभे व फर्श देख कर नही आने वाले लोग भी अचंभित हो जाते , महल अपने आप मे अद्वितीय है और उसका हर हिस्सा एक नई कहानी बयां करता है भले ही वह महाभोज कक्ष की 54 लोगों की खाने की मेज़ या 75 जोड़ों के लिए स्प्रिंग वाला लकड़ी का डांस फ्लोर, या रसोई के समान लाने के लिए नदी की नीचे के लिफ्ट या राजा रानी के शयन कक्ष, ड्रेसिंग रूम के शीशे तो अभी भी शानदार है एवं दरबारे आम व दरबारे खास की छत पर की गई नक्काशी हो या चित्रकारी, महाराज द्वारा पाले गए बाघों के शरीरों को देख कर लग रहा था कि अभी सजीव हो जाएंगे, सचमुच 2 एकड़ से ज्यादा जगह पर बना लाल बाग़ महल का चप्पा चप्पा अपने आप मे *इतिहास की धरोहर* है। हमें सरकार से अनुरोध करना चाहिए कि जितना समय व रखरखाव इतिहास के इन टुकडों को जितना रखरखाव व संगरक्षण देना चाहिए उससे बहुत कम मिल रहा है और एक वृहद योजना बना कर इन धरोहरों को सहेजना चाहिए। मैं आज मौजूद सभी सदस्यों विशेषकर भाभियों और बच्चों का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन सब के कारण हम लोग भी इन ऐतिहासिक स्मारकों को देख सके , जो सदस्य आज नही आ पाए उन्होंने निश्चित ही एक अच्छा अवसर खोया अपने इतिहास को जानने का। But there is always a next time.. धन्यवाद, अक्षत