*वो क्षितिज से उगता सूरज कब से नहीं देखा था?*
*वो सुबह की ओस पर किरण की चमक कब से नहीं देखी थी?*
*वो प्रातःकाल की ताज़ी हवा की खुशबु कब से नहीं महसूस की थी?*
*वो लहरों की सरगम कब आखरी बार सुनी थी?*
*वो पक्षियों का नैसर्गिकता में चहचहाना कब से नहीं सुना था?*
… इस भीड़ भाड़ भरी भागती दौड़ती धुल धूसरित जिंदगी से दूर *प्रकृति की गोद*में सबने मिलकर लम्हा ज़ीया।
जहाँ *पक्षियों का कलरव,
*लहरों का सरगम*,
*हवा में बयार*,
*मिट्टी की खुशबू …*
के बीच *दोस्तों की खिलखिलाहट* मिली- तो सचमुच *निर्मल आनंद गया* और एक नवस्फूर्ति का संचार जीवन में हुआ।
सभी का पुनः शुक्रिया, एक अविस्मरणीय अद्वभुत अनुभव के लिए।☘〰
निवेदक
– संजय
– अक्षत्
*वो सुबह की ओस पर किरण की चमक कब से नहीं देखी थी?*
*वो प्रातःकाल की ताज़ी हवा की खुशबु कब से नहीं महसूस की थी?*
*वो लहरों की सरगम कब आखरी बार सुनी थी?*
*वो पक्षियों का नैसर्गिकता में चहचहाना कब से नहीं सुना था?*
… इस भीड़ भाड़ भरी भागती दौड़ती धुल धूसरित जिंदगी से दूर *प्रकृति की गोद*में सबने मिलकर लम्हा ज़ीया।
जहाँ *पक्षियों का कलरव,
*लहरों का सरगम*,
*हवा में बयार*,
*मिट्टी की खुशबू …*
के बीच *दोस्तों की खिलखिलाहट* मिली- तो सचमुच *निर्मल आनंद गया* और एक नवस्फूर्ति का संचार जीवन में हुआ।
सभी का पुनः शुक्रिया, एक अविस्मरणीय अद्वभुत अनुभव के लिए।☘〰
निवेदक
– संजय
– अक्षत्